मातृदिवस
दिवसवर्ष माह सप्ताह प्रहर दिन,
शाम सुबह यह मानो।
जब तक सांस सलामत अपनी,
‘मातृ दिवस’ नित जानो।
जीवित ईश्वर न देखा हो तो
माँ की ओर निहार।
भक्ति का फल मिल जाये,
जब मां की करो मनुहार।
हरि भी विमुख रहेगा सदैव,
जो करे मात उपेक्षा।
जबकि माता कितना करती,
न कोई स्वार्थ अपेक्षा।
गर्भ सँजोना प्रसव वेदना,
मल मूत्र मैल सफाई।
दुग्धपान ,शिशुपालन में वह,
यौवन रूप गंवाई।
उसके ‘जाये’ रहे सलामत,
चिंता रहती चित।
जब तक जीवित प्रतिदिन प्रति पल,
कुशल मनाये नित।
दो उपहार और पर्व मनाओ,
मातृ दिवस है खास।
बाकी दिन भी करो यत्न यूँ,
मां न बने निराश।