‘वर्दी की साख’
उठा भरोसा लोगों का, इस हद तक वर्दी की साख से।
घटित हुई एक रोज ये घटना, जो देखी अपनी आंख से॥
क्योंकि मैं इस सबसे था बिल्कुल अनजान, इसलिए वह हैरान।
जब एक महिला की मदद करने आया, वर्दी में एक इंसान।
महिला को देखकर ही लगता था, कि वह पहले से ही थी परेशान।
वह वर्दी वाला बड़ी सौम्यता से बोला – मैडम! थोड़ा साइड में रुकिये।
मैं आपके लिए जगह बनाता हूं;
इन लाइन में खड़े लोगों को, यहां से हटाता हूं।
महिला झल्लाईं, थोड़ा चिल्लाई और बोली- रहने दो आप यह मेहरबानी।
जो आ गए यहां मदद करने, देखकर मेरी जवानी।
पहले ही क्या कम है, मुझे परेशानी॥
वह इंसान जो वर्दी में था, समझ नहीं पाया;
उस महिला की यह बेरुखी और कदरदानी।
बेचारा वहां से दूर जाकर, खुद से ही बड़बड़ाया, थोड़ा बौखलाया;
कहते हैं महिलाओं की सुरक्षा करो, पर उन्हें नहीं करानी।
और करने जाओ तो यह मर्दानी,
कोसतीं है पी-पीकर पानी॥
जमाना बदल गया, अबला हो गई सबला;
और इनका हार्ट हो गया हार्ड।
यह सच्ची घटना है ‘अंकुर’, वह जगह थी कम्पनी कैंटीन का मार्ग।
और वह वर्दी में पुलिस वाला नहीं, था उसी कम्पनी का सिक्योरिटी गार्ड॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136