वर्तमान
बड़ी याद आती है अक्सर
गुज़री हुई चीजों की
सर्दी में गर्मी की , गर्मी में बारिश की
बारिश में बसंत की , बसंत में पतझड़ की
आज में बीते दिनों की और
बीते दिनों में और भी बीते दिनों की
या आने वाले भविष्य की
और इस मन की सारी ड़ोरियों में
उलझ कर , गिर कर , टूट कर
बिखर जाते हैं वो लम्हे
जिन्हें हम ‘वर्तमान’ कहते हैं ,,,
क्या कोई ऐसा भी पल होता है
जहां हम पूरी तरह रहते हैं ?
क्षमा उर्मिला