वर्तमान परिपेक्ष्य मेंं
देश की परिस्थितियों पर एक छंद
हमारे देश की देखो /दशा अब आम जन जन की।
कहाँ है न्याय की धारा /गयी अब सूख जल घनकी।
नहीं सम्मान अब बाकी /बची है गंध मधुवन की।
मिली है हर दफा हमको/ सदा आवाज़ ठन ठन की।
मिली तारीख पर तारीख छूटी आस हर मन की।
अदालत ने सुना दी आज फिर तारीख लंबन की।
गयी है टूट सारी आस फिर इंसान /जन मन की।
यहाँ हर साख पर बैठा है उल्लू आज उपवन की।