वर्तमान परिदृश्य में महाभारत (सरसी)
अंधा राजा मौन सभासद, द्यूत सभा तैयार
अस्त्र त्याग कर चूड़ी पहने, पाण्डव हैं लाचार
भीष्म उचित अनुचित की गणना, आज गए हैं भूल
विवश प्रजा के सपने सारे, रहे हवा में झूल
देख कुटिल शुकुनी की चालें, पसर गया है मौन
सबके भीतर दर्द छुपा पर, इसे मिटाए कौन
स्वर्ण मृगों के मोहजाल में, सीता है नादान
भेष बदल कर खड़ा दशानन, समझे नहीं सुजान
विश्वासों की मानस काया, हुई अधमरी आज
छद्म आवरण पहन कुटिलता, करे कोढ़ में खाज
हानि लाभ के अंकगणित में, बँधी स्वार्थ की डोर
मोहक मुस्कानों के पीछे, छिपे हुए हैं चोर
जाति – वर्ण में हमें फँसाकर, नेता चलते चाल
उलझ रही है जनता भोली, ऐसा कुछ वाग्जाल
अनसुलगे चूल्हों की बस्ती, भूखे प्यासे लोग
एक तरफ पर नेता देखो, खाते छप्पन भोग
गोदान समझ मतदान किया, पकड़ आस की डोर
फिर भी होरी की कुटिया में, अंँधियारा चहुँओर
महंँगा हुआ और भी आटा, उछली अरहर दाल
दूध दही सपना उनके हित, जो जन है कंगाल
हुए सयाने कच्चे – बच्चे, गाते फ़िल्मी गान
सबके हाथों में अब दिखता, सुरा – पान पकवान
आएगा सबके जीवन में, शुभ दिन देर सबेर
समझ सको तो समझो गोया, खिलता देख कनेर
नाथ सोनांचली