“वर्तमान का यथार्थ”
खो रही संस्कृति खो रहे संस्कार है,
युवाओं में बढ़ रहे अनेक दुर्विकार है।
चरित्र का नैतिक पतन हो गया,
संस्कृति का दमन हो गया।
युवाओं में सिगरेट पीना फैशन हो गया,
नशा करना एक प्रचलन हो गया।
माता-पिता और गुरुओं का सम्मान कम हो गया,
एकलव्य समान शिष्य अब बेदम हो गया।
शराब पार्टियों की शान है,
दोस्तों के साथ मौज-मस्ती की पहचान है।
मूल्यों का हास प्रमुख हो गया,
श्रवण समान पुत्र माता-पिता से विमुख हो गया।
संघर्षो से जूझना शून्य हो गया,
रिश्वत जैसा पाप आज पुण्य हो गया।
कर्म की निष्ठा में संशय हो गया,
देश द्रोही आज निर्भय हो गया।
लक्ष्य के प्रति समर्पण दूर हो गया,
इंसानियत ही राह में जीवन मजबूर हो गया।
मनुष्य आज का अकर्मण्य हो गया,
बुजुर्गों के अनुभव की पूँजी का मूल्य नगण्य हो गया।
कर्मों की निष्पक्षता में ज्ञान का प्रकाश तम हो गया,
एकलव्य समान शिष्य आज बेदम हो गया।