वर्ण पिरामिड और सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक
यह मेरी नवविधा है – ”वर्ण पिरामिड”
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[इसमे प्रथम पंक्ति में -एक ; द्वितीय में -दो ; तृतीया में- तीन ; चतुर्थ में -चार; पंचम में -पांच; षष्ठम में- छः; और सप्तम में -सात वर्ण है,,, इसमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं ,,,,मात्राएँ या अर्द्ध -वर्ण नहीं गिने जाते ,,,यह केवल सात पंक्तियों की ही रचना है इसीलिए सूक्ष्म में अधिकतम कहना होता है ,,किन्ही दो पंक्तियों में तुकांत मिल जाये तो रचना में सौंदर्य आ जाता है ] जैसे-
है
धीर ,
गंभीर,
धरा पुत्र ,
बहा दे नीर,
पर्वत को चीर ,
युद्ध में महावीर । (1)
ये
पग,
साहसी,
अविचल,
लक्ष्य बोधक,
विजय द्योतक ,
स्वर्णिम सम्बोधक । (2)
**सुरेशपाल वर्मा ‘जसाला’ (दिल्ली)
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मेरी एक और नव विधा – *सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक*
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*****कृपया ध्यान दें ****(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द या शब्दों से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द या शब्दों से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति 13 +11 मात्राभार रखती है ) मुक्तक में तीसरी पंक्ति का तुकांत भिन्न होता है.
*****दोहानुसार मात्राक्रम प्रति पंक्ति –
**[१] — 4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1 )
या [२]—3 +3 +4 +3 (1 2 ),,,,3+3+2+3 (2 1 )
या [३]—4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,3+3+2+3 (2 1 )
या [४]—3 +3 +4 +3 (1 2 ),,,,,,,4 +4+3 (2 1)
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सच्चाई का खून ह्वै ,खिला झूठ का रंग
रंग प्यार का बह गया ,है विधान भी दंग
दंग सभी जन मन यहाँ ,देख वोट का खेल
खेल सत्य का ही करो ,रहो सभी मिल संग। [१]
वृक्ष तले जब राजते ,गौं पालक घन श्याम ;
श्याम रंग मन ये बसा,भजते जो निष्काम ;
काम क्रोध संकट कटें ,प्रमुदित मन संसार ;
सार रूप राधे भजो ,भजो कृष्ण का नाम । [२]
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)