वरिश की बूंदें
किसी गाँव में बनिया रहता था। मूसलाधार वर्षा हो रही थी। उसने एक मंदिर के पुजारी को देखा जो मंदिर तक पहुँचने के लिए तेजी से दौड़ रहा था। पुजारी बारिश से बचने बचने की कोशिश कर रहा था। जब बनिए ने पुजारी को ऐसा करते देखा, तो उसने पुजारी को फटकार लगाई और कहा कि पुजारी भगवान की अवमानना कर रहा था। जब भगवान पृथ्वी पर वर्षा डाल रहे हैं, तो पुजारी को इससे बचने के लिए तेजी से नहीं चलना चाहिए बल्कि पुजारी को बारिश को गले लगाना चाहिए। पुजारी तब बारिश में सड़क पर रुक गया और पानी में भींगता रहा। परिणामस्वरूप बुखार से पीड़ित हो गया।
3-4 दिनों के बाद पुजारी मंदिर में बैठा था और खांस रहा था। फिर से बारिश हो रही थी। पुजारी ने उस बनिए को देखा जो मंदिर से अपने घर की तरफ भाग रहा था और बारिश से बचने की कोशिश कर रहा था। जब पुजारी ने बनिए को ऐसा करते देखा, तो उसने बनिए को फटकार लगाई और कहा कि वह भगवान की अवमानना कर रहा है। जब भगवान पृथ्वी पर वर्षा डाल रहे हैं, तो बनिए को इससे बचने के लिए तेजी से नहीं चलना चाहिए बल्कि बनिए को बारिश को गले लगाना चाहिए।
बनिया तेजी से भागता रहा। उसने पुजारी से कहा, “बारिश की बूंदें बहुत मूल्यवान होती हैं। बारिश की बूंदें ईश्वर द्वारा प्रदान की जा रही हैं और वो बहुमूल्य हैं। इस तरह भागकर वो इन बारिश की बूंदों का सम्मान कर रहा है।” बनिए ने कहा, “वह तेजी से भाग रहा था, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि बारिश की बूंदें उसके पैरों के नीचे आ जाएं। अगर बारिश की बूंदे उसके पैरों के नीचे आ जाती हैं तो इससे उन बहुमूल्य बूंदों का अपमान हो जाएगा बनिए। यही कारण है कि वो बारिश की बूंदों से बचने की कोशिश कर रहा है।”
यह आम आदमी के सच्चाई की व्याख्या करता है। सच्चाई बिल्कुल वैसी ही है। यह सार्वभौमिक और सर्वव्यापी है। जब सत्य को आम आदमी द्वारा माना जा रहा है, तो यह अहंकार द्वारा प्रक्षेपित किया जा रहा होता है। यही कारण है कि एक व्यक्ति एक समान निर्णय सारी परिस्थितियों में नहीं ले सकता। सत्य की व्याख्या व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है। आवश्यकता और बदलती हुई स्थिति के अनुसार एक आदमी सत्य की व्याख्या अलग अलग तरीके से करने के लिए बाध्य है। जब कोई व्यक्ति अहंकार की सीमा से परे चला जाता है, तो उस स्थिति में उसकी आँखें सच्चे अर्थों में सत्य को समझने में सक्षम हो पाती हैं।
अजय अमिताभ सुमन