!!! वराह अवतार !!!
पाप अधर्म ने डाला डेरा,
जग में छाया घोर अंधेरा,
जब धरा पर असुर आए,
नक्षत्र सूर्य चंद्र डगमगाए,
कश्यप दिति की दो संतान,
पाकर ब्रह्मा जी का वरदान,
असुरो में आई शक्ति की लहर,
भक्तो पर फिर टूट पड़ा कहर,
पृथ्वी को ले गया रसातल,
सृष्टि में मची उथल पुथल,
सारे देव करें प्रभु आराधना,
संकट से आप ही उबारना,
शुक्ल पक्ष की तीज भाद्र माह,
भगवान आए बन एक वराह,
विष्णु जी का तीसरा अवतार,
हिरण्याक्ष का करने आए संहार,
युद्ध चला बहुत भीषण,
सुर असुर सब देखते रण,
असुर का डगमगाया प्रण,
सम्मुख थे आज नारायण,
असुर जाए किसकी शरण,
अब होना हैं निश्चय मरण,
हिरण्याक्ष का हो गया अंत,
हर्षित हुए सारे साधु संत,
रसातल से धरा ले आए,
भक्तो को भगवान भाए,
धन्य धन्य वराह अवतार,
प्रभु की सदा जय जयकार,
जब – जब धरती पर बढ़े, अधर्म अत्याचार।
भक्तो की रक्षा करें, श्री हरि के अवतार।।
अपने – अपने कर्म का, होता यही हिसाब।
पाप – पुण्य कितने करें, कहती कर्म किताब।।
—-जेपीएल