“वरदान”
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आज का विषय जब ‘वरदान’ है ।
लेते इसका शब्दार्थ हम जान हैं ।
देवता,ऋषियों आदि से प्राप्त वर;
जो आते बहुत ही हमारे काम हैं।।
मनुष्य जीवन ही एक ‘वरदान’ है ।
पिछले जन्म का ही ये ‘उत्थान’ है।
लाखों योनि के बाद है ये मिलता…
जहाॅं हर कर्म में छुपी ‘पहचान’ है।।
विज्ञान भी आज इक वरदान है।
जिसके प्रयोग से बढ़ती शान है।
चमत्कार इसका इतना बढ़ रहा ;
इसी से बनते आज ‘भगवान’ हैं।।
आज न कहीं मिलते भगवान हैं।
लेते मंदिर मस्जिद हम ‘छान’ हैं।
आज सारा कुछ तो ‘विज्ञान’ है ;
यह लेते क्यों नहीं हम ‘जान’ हैं।।
वे सारे लोग आज ‘भगवान’ हैं ।
मदद करते जो अपना जान हैं ।
ढूंढ़ने पर आसानी से ना मिलते ;
पर ये आसपास के ही इंसान हैं।।
कोई अच्छा दोस्त एक ‘वरदान’ है।
बड़ी मुश्किल से मिलता ये नाम है।
किसकी मंशा कब क्या हो जाए….
ये न पहचान पाता कभी इंसान है।।
‘औरत’ भी प्रकृति का एक वरदान है।
जिसके सारे गुणों से हम अनजान हैं।
उनकी कद्र सबको ही करनी चाहिए ;
यह सब कहता अपना वेद पुराण है।।
कोई उत्सव भी जीवन में वरदान है।
इससे थमता ज़िंदगी का ‘तूफान’ है।
इसी बहाने प्रभु की आराधना करते ;
प्रभु स्मरण में ही लग जाता ध्यान है।।
“स्वरचित एवं मौलिक”।
©® अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 07-02-2022.
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