वफ़ा करते दिले- बीमारे- उल्फ़त से नज़र भर देखते मुझको मुहब्बत से
वफ़ा करते दिले- बीमारे- उल्फ़त से
नज़र भर देखते मुझको मुहब्बत से
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ग़ज़ल
क़ाफ़िया- अत, रदीफ़- से
वज़्न-1222 1222 1222 1222
अरक़ान- मुफ़ाईलुन × 4
बहर-बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
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वफ़ा करते दिले- बीमारे- उल्फ़त से
नज़र भर देखते मुझको मुहब्बत से
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तुम्हारी हर परेशानी तुम्हारी है
तुम्हें लड़ना है खुद अपनी मुसीबत से
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हवाएँ बन गईं दुश्मन चराग़ों की
ज़माना देखता है उनको हैरत से
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हमेशा बाजुओं में अपनी रखना दम
कोई उम्मीद मत रखना हुक़ूमत से
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लड़ाई से न कुछ हासिल हुआ करता
समझना चाहिये ये बात शिद्दत से
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नज़र टेढ़ी किये रहते हो हर दम ही
कभी तो पेश आओ जी शराफ़त से
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जहां वाले बिछाया करते हैं अक्सर
कभी पत्थर नहीं आते हैं जन्नत से
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छिड़ी फिर से मुहिम ईमानदारी की
फ़रिश्ते लड़ रहे शैतानी फ़ितरत से
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बुजुर्गों की दुआओं से मिले दौलत
दुआएं मिल नहीं सकती हैं दौलत से
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लड़ाते हैं सभी को मंदिरो – मस्ज़िद
भरोसा उठ गया गुलशन इबादत से
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राकेश दुबे “गुलशन”
14/11/2016
बरेली