वजूद
ये खामोश, काली रातें, क्यों घूरती हैं मुझको!
एक नन्हा -सा दीया तो हमने अपने लिए जलाया था।
बहुत देखा है, ज़माने के सितारों का कमाल !
सुबह होते ही जिनका कोई वजूद ना रहा।
ये खामोश, काली रातें, क्यों घूरती हैं मुझको!
एक नन्हा -सा दीया तो हमने अपने लिए जलाया था।
बहुत देखा है, ज़माने के सितारों का कमाल !
सुबह होते ही जिनका कोई वजूद ना रहा।