वक्त
वक्त का पहिया कभी थमता नहीं,
मुक़द्दर पर किसी का इख़्तियार होता नही ,
इंसां गर्दिश- ए – दौराँ के हाथों का ग़ुलाम है ,
कभी खुशी की सहर ,तो कभी ग़म में डूबी शाम है ,
ज़ेहन में छाए यादों के अब्र कभी नही छँटते ,
ख़यालों में उमड़ते घुमड़ते कभी ख़्वाबों में उभरते,
कुछ गुज़िश्ता लम़्हे तवारीख़ बन जाते है ,
कुछ बीते हुए पल ज़ेहन से उतरकर दिल में पैवस्त हो जाते है।