वक्त
वक्त रोकना चाहा था
हर बार मगर वो निकल गया
आगे पीछे देखा भी,
न जाने कब किधर गया।
लम्हे चुरा चुरा कर मैंने
कई बार संजोये, सुंदर पल,
अगले ही पल में, न जाने
क्यूँ और अधिक मैं बिखर गया।
उठना गिरना ही रोज हुआ
हर रोज हुई, टूटन, तड़पन
थी मेरी कब परवाह उसको
वो वक्त था, निष्ठुर, निकल गया।
गोविन्द मोदी-8209507223