वक्त रात पर अड़े
अब काँच पर पत्थर गिरे, फर्क न पड़ता अब जिद को!
अब वक्त रात पर अड़े, इंतजार न होता अब आँखों को!
आख़िर कब तक तक़दीर पर डालकर मै खेल ऐसा खेलूँ!
कि होठों से अफ़साने गिरे, पर आँच न आती कलेजे को!
–सीरवी प्रकाश पंवार
अब काँच पर पत्थर गिरे, फर्क न पड़ता अब जिद को!
अब वक्त रात पर अड़े, इंतजार न होता अब आँखों को!
आख़िर कब तक तक़दीर पर डालकर मै खेल ऐसा खेलूँ!
कि होठों से अफ़साने गिरे, पर आँच न आती कलेजे को!
–सीरवी प्रकाश पंवार