*”वक्त तो लगता है”*
“वक्त तो लगता है”
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बीज से निकलती कोपलें शाखाएं तरु बने ,
फल लगने में ……
जी जान लगन से परिश्रम कर ,सपनों को साकार मंजिल तक पहुंचने में ….
पेड़ों से पत्ते गिरते ,ऋतु परिवर्तन से नई पत्तियां आने में …
“वक्त तो लगता है”
करोड़ों वर्षों तक तप में लीन हो ,तपस्या का फल मिलने में ….
रूठे हुए को मनाना ,रोते बिलखते परिजन को फिर से समझाने में ….
भावनाओं संवेदनाओं को जब ठेस पहुंची उसे फिर से ढाढस बंधाने में …..
“वक्त तो लगता है”
उलझनों भरा ये संघर्षो से जूझते हुए, जीवन को सुलझाने में धैर्य रखने में ….
अमावस्या की काली रातों ,तमस अंधकार मिटाने पूर्णिमा के चाँद को आने में ..
“वक्त तो लगता है”
कुछ खोना कुछ पाना ,बिखरे हुए जीवन को संवारना चेहरों पर मुस्कराहट लाने में …
बेटी को पीहर से ससुराल आने में, रिश्तेदारों के साथ सामंजस्य बिठाने में ….
बेटी से पत्नी फिर बहुरानी बनकर ,फिर माँ का फर्ज निभाने में ….
“वक्त तो लगता है”
मानव शरीर जन्म लेकर ,मायामोह सांसारिक सुख सुविधाओं को जुटाने में …
रीति रिवाजों को निभाने में ,दुनिया भर की जिम्मेदारी निभाने में ……
निराशाओं से आशावादी बनने के लिए ,हिम्मत जुटाने उम्मीद जगाने में …
“वक्त तो लगता है”
अंतर्मन में नई दिशा आशाओं उम्मीद का दीप जलाने में थोड़ा सा “वक्त तो लगता है”
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शशिकला व्यास ✍