वक्त की बुज़दिली
मुझे गमगीन करना गर तेरे ,फ़ितरत में शामिल है।
तो ऐ वक्त! ये जान ले ,तूं मेरे खुशियों का कातिल है।
मुझे गिराने की फिराक में रहता है मेरी किश्मत की
आड़ में,
तूँ सामने से नही आता ,क्या तूं इतना बुजदिल है।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुझे गमगीन करना गर तेरे ,फ़ितरत में शामिल है।
तो ऐ वक्त! ये जान ले ,तूं मेरे खुशियों का कातिल है।
मुझे गिराने की फिराक में रहता है मेरी किश्मत की
आड़ में,
तूँ सामने से नही आता ,क्या तूं इतना बुजदिल है।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी