वक्त का गुबार में सब पीछे छूट जाता है …
कल तक तो था परिवार का सबसे प्यारा,
श्वास निकलते ही हो जाता है न्यारा।
वक्त का गुबार ऐसा उड़ता है जोरो से ,
कहीं भी नहीं मिल पाता उसे सहारा ।
पहले तो साथ छूट जाता प्रियजनों का ,
फिर उसकी निशानियों का होता निबटारा ।
धीरे धीरे मन से वियोग का दुख चला जाता,
और फिर दिमाग उसकी यादों से भी कर लेता किनारा।
इस प्रकार वोह प्रियजन जीवन से पूर्णतः मिट जाता,