“वक्त कहीं थम सा गया है”
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रगों में कतरा कतरा लहू, जम सा गया है
मुसाफिर रुक गया फूल दम सा गया है
चाँद सितारों से रोशन है ,दुनिया सारी ये
तेल बाती का दिये में हो ख़तम सा गया है
फिरते है क्यों मारे- मारे दर बदर यूँ सारे
बाद एक के दिया दूसरा ज़खम सा गया है
जीते मुल्क दुनिया भी जीती, मिला क्या?
सिकंदर भी यहां से ,खाली रकम सा गया है
मुकद्दर मैं क्या है ,नही जानता यहाँ कोई
जाना भी तब जब वक्त, कहीं थम सा गया है
©ठाकुर प्रतापसिंह”राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश)