वक्त और करवट
वक्त है
बड़ा बलवान
कब किस
करवट बैठता है
कोई नही जानता
लेता है जब
ये करवट
बना देता है
राजा को रंक
रात
जब लेती है
करवट
उम्मीदों की
रोशनी फैलती है
चहुंओर
उम्र की करवट
रुबरू करा
देती है
जिंदगी की
पहेलियों से
कभी धूप तो
कहीं छाह
नज़ाकत समझो
ऐ इन्सान
वक्त की
लेता है करवट
जब ये
पहुँच जाता है
इन्सान
श्मशान तक
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल