वक़्त
है वक़्त
बड़ा बलवान
अविरल
घुमता चक्र
सुबह-ओ-शाम
बनता राजा से रंक
और रंक से राजा
घुमती रहती
जिन्दगी
पहिये सी
ठहरती नहीं
जिन्दगी
जब तक हैं
प्राण
इन्सान में
खोजा
जीरो ( 0)
भारत ने
हुआ फिर
आविष्कार
पहिये का
हुई आसान
जिन्दगी
मिली गति
मानव को
है रिश्ता
पति पत्नी के बीच
एक गाड़ी सा
चले पहिये
बराबरी से
हंसी-खुशी
खट्टी मीठी सी
है जिन्दगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल