वक़्त
कोई अनछुआ सा पल रह न जाए।
कोई अन कहा सा शब्द रह न जाए।
बीते समय की तलाश में,
खोए सुखों की आस में ,
कोई सुनहरा अवसर कहीं रह न जाए।
सुन वक़्त के तरकश में सजे वान बहुत सारे।
वह वक़्त के ऊपर है किस वक्त कौन
सा तीर तरकश से लेकर के,
समयके घोड़े में मारे।
वक़्त वह है जो अर्स से उठा के ,
जमी पर ले जाता है।
वक़्त वह पुरोधा है,जो अपराजित योद्धा को जीत से कोसों दूर धकेल लेे जाता है।
जो सिखा न पाए महा गुरू,वो वक़्त सहजता से सिखा देता है।
वक़्त ही है जो मुरझाए फूलों में नूर बन महका देता है।
वक़्त ही हर अच्छे बुरे का एहसास करा देता है।
जब वक्त का मोहताज है हर सख्श,
तो फ़िर आए वक़्त को ठुकरा के क्यों इतराता है।
आज के इस वक़्त को जी खुल कर ,
बात बात पर वक़्त से किनारा न कर रेखा
कहीं रूठो को मनाने में ही न उम्र गुज़र जाए।