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15 Oct 2020 · 1 min read

वक़्त लगता है मेरी जाॅं इस जहां से जाते जाते

वक़्त लगता है मेरी जाॅं इस जहां से जाते जाते
वक़्त होता तो तेरी पेशानी पे इक बोसा हम लुटाते जाते

वक़्त की टहनी पे भूख लगे हैं और पत्ते प्यासे है
मेरे बस में गर होता तो रोटी पानी उगाते जाते

अब तो चारो ही तरफ़ फकत अंधेरा ही अंधेरा है
बस में होता तो हर इक घर में उम्मीद का दिया जलाते जाते

लाखों अलग सूरत इक गम का दुनियां इक मेला है
बस में मेरे होता तो सब को हम गुदगुदाते हॅंसाते जाते
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
3 Likes · 330 Views
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