वक़्त के वो निशाँ है
वक़्त के वो निशाँ है
चेहरे पर हमारे लिखे हुए
हर हर्फ़ बारीक़ हैं
पढ़ें ज़रा ग़ौर से
कुछ ख़ुशियों के इज़हार हैं
तो कुछ हैं ग़मज़दा
आँखों का समन्दर
तो सालों पहले सूख गया
ग़र हसें ज़रा भी तो होठ
हो जाते लहूलुहान
अब तो मुस्कुराने से भी
ख़ौफ़ लगता है
………. अतुल “कृष्ण”