*वक़्त का एहसान*
क्या आपने कभी किसी की आँखों को
बिना आँसुओं के रोते देखा है?
किसी टूटे हुए दिल को
बिना किसी उम्मीद के,
उम्मीदों को ढोते देखा है?
बाहर से शांत दिखने वाले
झील की गहराई में
मछलियों को तड़पते देखा है?
ब्रह्माण्ड की चाल के बावजूद
किसी की घड़ी की सुई को
अतीत के किसी बिंदु पर
अटकते देखा है?
सूरज को पूरब से निकलते हुए
तो रोज देखा होगा,
मगर किसी पूनम की रात को
एकाएक अमावस में बदलते देखा है?
दिनभर की मसरूफियत में
जो दर्द बिखरा बिखरा सा रहता है,
रात की तन्हाई में उसी दर्द को
हृदय की अंतरतम की गहराई में
सिमटते देखा है?
सज़ायाफ़्ता किसी मुज़रिम को ख्वाब में
कफ़स के दरवाजे से निकलते देखा है?
ख़ुशनुमा वक़्त को बालू की मानिंद
भिंची हुई मुठ्ठियों से
फिसलते देखा है?
किसी के टूटे हुए सपनों को
कच्चे धागे में पिरोए मोतियों सा
बिखरते देखा है?
किसी के प्राणों से प्यारे मीत को
असमय ही बिछड़ते देखा है?
अगर नहीं देखा यह सब
तो आप पर किस्मत का
यह बहुत बड़ा एहसान है,
जी लीजिए खुशी से अपनी ज़िंदगी
क्योंकि कौन जाने वक़्त कब तक
आप पर मेहरबान है?