***वकत***
कभी वक्त मिला
तो मिल आते थे
कुछ कह आते थे
कुछ सुना आते थे
वो वक्त था…..
आज भी वक्त है
कुछ कहना चाहें
तो सुनने का वक्त नहीं
और कुछ सुनने की इच्छा हो
तो फिर कुछ कहने का वक्त नहीं….
सरताज है वकत
तभी आबाद है हर इंसान
हर पाबंदी में
सब को बाँध चूका का वकत
थी दूरियन फिर भी मिल जाता था वकत
आज दूरी हो रही पास
पर फिर भी नहीं मिलता वकत….
खुश किस्मत हैं वो
जो दे देते हैं किसी को वकत
वकत की गुलामी से
निकल कर, दुःख दर्द
बाँट ही लेते हैं,
और निकल लेते हैं
अपनों के लिए वकत…….
अजीत कुमार तलवार
मेरठ