लौट चलें🙏🙏
लौट चलें 🙏🙏
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सृष्टि माता का एक नगीना
प्रकृति के विस्तृत अंगन में
सूक्ष्म अंश अनन्त के पार
नगण्य भाग अणु परमाणु
अंशों मेंअंशों का अंशदान
मूक बधिर दृष्टिहीन बिहान
स्वर सुंदर गूंजन पलक हीन
श्रवणविहीन अनुभवहीन था
अंग लाल भस्म रमाया था
वेदना दर्द बेसुमार पड़ा था
उछल कूद चिल्लाते स्पर्श
नूतन दुनियाँ हाथ पैर चला
जननी से पाया उत्थान था
धर्म कर्म श्रम में यौवनारंभ
जगत जीव दहलीज़ के पार
अदृश्य अलौकिक ब्रह्मांडों में
भ्रमण भ्रमित सूक्ष्म अंश पुंज ।
सर्वजन दूर शून्य में प्राण था
भूख प्यास तीखा समीर जल
दिशा शान्त गगन निस्तब्ध था
तट सरिता तरुहीन क्षितिज में
वादी परिवर्त्तन बंधन मुक्त था
अचल सघन अंदर बाहर तमस
अलक जाल ज्योति था विशाल
नटराज नट निरत ताल लुप्त
सृजन संहार हुंकार पाद युगल
शून्य सार परे पार अनन्त पड़ा
कोलाहल प्रलय शांति निश्चल
वह मधुर मिलन हृदय प्रवाह था
विगत बातों की यादों दूर निकल
जैसी करणी वैसी भरणी अनुभव
शांति प्रान्त मुक्तिधाम लौट चला
हे प्राणी ! करले अपनी भूल सुधार
विष मत फैलाओ नेक कर्मो धर्मो
जीवन प्रवाह में अमृतपान यतन
कर्म किए जा फल की इच्छा मत
कर ऐ इंसान जैसे कर्म करेगा वैसे
फल देगा भगवान । ये हैं गीता का
ज्ञान । हरपल याद रखना ऐ इंसान
तेरा क्या जो दिक् भ्रमित हो इंसान
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तारकेशवर प्रसाद तरूण