लौट आए.।
वज़्न –2122 2122 2122 2122
क़ाफिया –‘आरे’ की बन्दिश
रदीफ़ -लौट आए
लौट आए गुलमुहर से दिन हमारे लौट आए।
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2122 2122 2122 2122
आरे की बंदिश, लौट आए
खोजती फिरती रही वो ,पिय हमारे लौट आए,
हँस रही थी चाँदनी भी ,देख तारे लौट आए।।1
स्वच्छता मेरे हृदय की ,देख लोगे जब कभी तुम,
तब कहोगे काँपते पग भी विचारे लौट आए।। 2
घन घटा घूँघट हटा मुस्का रही थी चाँदनी भी ,
देख लो जी भर सभी ,सपने कुँवारे लौट आए।।3
मौसमे-गुल साथ लेकर, वो निगाहें मस्त आया,
लो नज़ारों संग मेरे, ख्बाव सारे लौट आए।।4
अब इसी को जिंदगी कह लीजिए या मर्ज ए सुब्ह,
हिचकियों के संग साथी ,वो तुम्हारे लौट आए।।5
जिंदगी रफ़्तार की बातें सदा करती रही है,
बेकरारी जीत की थी,तो किनारे लौट आए।।6
‘मन’फरेबे मर्ग से है दूर यूँ यारों अभी तक ।
उम्र के कच्चे मगर सच्चे सहारे लौट आए।।7
फरेबे मर्ग–मौत का धोखा
मर्ज ए सुब्ह –सुबह का रोग
मनोरमा जैन पाखी
भिंड