लौटो गांधी
आओ, फिर से धरती पर उग आओ गांधी।
फिर से भारत मांग रहा है तेरी एक कुर्बानी, कर्म तुम्हारा याद रखेगा भारतवर्ष जुबानी,
मार्ग दिखाता सत्य तुम्हारा हरदिल है बलिदानी, और अहिंसा ला देती है दुष्टों में फिर आंधी!!
आओ फिर से धरती पर उग आओ गांधी।
हर जवान की चाह बने गांधी, बने आंधी,
कंटक पर धरकर पग, करें घनरव, सहे आंधी।
दुष्ट के द्वार तक जाकर जमाए गाल पर थप्पड़,
घुसकर आंगन के अंदर जलाए एक-एक छप्पर,
मगर यह काम गांधी का! मगर यह काम का गांधी।
आओ फिर से धरती पर उग आओ गांधी.
फिर तोड़ अहि के अहम, भस्म कर दे इनके विष को,
फुँफकारते हैं जो गरल, अब नाथ, नाथ उनको, फिर से गोकुल में देखो अब कालिया आया! फिर से भारत में देखो अब बवालिया आया,
दे दो एक बार तूफ़ाँ,नहीं,बस एक बार आंधी!आओ फिर से धरती पर आओ गांधी।
तुम्हें दोबारा चलना होगा विषधर के बांबी पर,
तुम्हें उछलना होगा गांधी खुद अपनी छाती पर, तेरा ही धड़कन तेरे, तन को विष पिलाता है,
बड़े शर्म की बात कि भाई,भाई का खून गिराता है,
मालिक बर पर बंदूक तानते हैं उसके ही बांदी।
आओ,फिर से धरती पर उग आओ गांधी।
देखो तेरे भारत में अब अस्मत लूटी जाती है,
हर गरीब की, देखो गांधी, किस्मत फूटी जाती है,
दो कौड़ी के मोल गरीबी में सांसे रोती हैं,
मगर तुम्हारी दुनिया गांधी, सेजों पर सोती है,
अहं-भेद का उठा जलजला,चली पाप की आंधी।
आओ फिर से धरती पर उग आओ गांधी।
तुम्हें दोबारा इस दुनिया में अलख जगाना होगा सुनो, सुनो, ऐ गांधी¡ फिर सीने पर गोली खाना होगा!
तेरे जमाने में, गांधी! गोरे काले को ठगते थे, आज जमाना, देखो,गांधी! काले-काले को ठगते हैं,
भ्रष्ट आचरण की तूती है, जैसे तपन मियादी!! आओ फिर से धरती पर उगा आओ गांधी।