लौटकर मत आना
खत्म हुआ इंतजार मेरा अब तुम लौटकर मत आना।
मंजिल राह तके तुम्हारी तुम तो पथ पर बढ़ जाना।।
राह मेरे बेराह हुए और मंजिल भी मेरी रूठी मुझसे,
जिंदगी शुरू भी मेरी और खत्म भी है मेरी तुझसे।
हर कदम अब पूछा रहा कि क्या मिला है तुझे उससे।
ख्वाब भी थे “मलिक” के ओर सपने भी थे तेरे जिससे।।
फैलाकर के बाहें अपनी अब तुम हर खुशी को यू पाना।
खत्म हुआ इंतजार मेरा अब तुम लौटकर मत आना।।
कांटे ही कबूल मुझे अब नफरत हो गयी है फूलों से।
स्थिर खड़ी हूं बस झूलना नही उन फरेबी झूलों से।
नासूर हुए वो घाव अब जो लगे तेरे उन त्रिशूलों से।
जिंदगी हुई कितनी आसान अब “मलिक” के रूलों से।
अच्छा नही लगता “मलिक” अब तुमसे गैर को सताना।
खत्म हुआ इंतजार “सुषमा” का अब लौटकर मत आना।।