लो फिर बसंत आया
है मन पुलकित, है तन पुलकित
पुलकित है जग सारा |
है वन पुलकित उपवन पुलकित
पुलकित है नभ सारा |
मस्तिष्क की डालियां कहने लगीं फिर ..
लो फिर बसंत आया.. लो फिर बसंत आया.. लो फिर..
नई नई सी बेलें नवयुवती सी ,
हरी भरी सी रंगबिरंगी सी
कोपलों के वस्त्र पहने
पुष्प गहनों से सुसज्जित सी ,
लो फिर वृक्ष ने छेड़ा
वो प्रिये सी इठलाने लगीं फिर …
लो फिर बसंत आया.. लो फिर बसंत… लो फिर बसंत..
कोयल का ये स्वर मीठा
शब्द तो क्या अक्षर मीठा ,
आ गया देखो भंवरा भी ,
गुनगुना रहा एक गीत मीठा
ये पवन भी सुरमई होने लगी फिर…
लो फिर बसंत आया.. लो फिर बसंत.. लो फिर बसंत..
भर गई पत्तियों से पातविहीन डालियां
चमक उठा मोतियों सा बौराया आम
कमलमय सरवर को अब क्या दूं नाम
पावन प्रकृति बासंती होने लगी फिर…
लो फिर बसंत आया.. लो फिर बसंत.. लो फिर बसंत..