लो फिर गर्मी लौट आई है
लो फिर गर्मी लौट आई है
मन में वो यादें घिर आई हैं
हर घर में मटकों का पानी
दलिया रबड़ी सबको खानी
बड़े बुजुर्गो की बात सयानी
आज फ्रिज की ठण्डाई है
दोपहरी में वो पेड़ों की छाया
शिकंजी करती ठण्डी काया
मिट्टी के घरों तक थी माया
अब बंगलों में एसी भाई है
बचपन खेले आंख मिचौली
कोयलिया बोले मिठी बोली
चौपालों में थी हंसी ठिठोली
आज दिलों में बस तन्हाई है
नदी-तालाबों में होता नहाना
पीतल मिट्टी के बर्तन में खाना
सांझ सवेरे वो सैर को जाना
‘विनोद’ये आंखें छलकाई हैं ं