लोहा ही नहीं धार भी उधार की उनकी
जो कुछ बुरा है अपने जीवन में
किया-धरा नहीं अपना वह
उनने धरा दिया जबरन और अनधिकार
उनके जीवन में
जो भी दिखती है धार
वह सब है बहुजनों से छीना छल कपट वाला
ले उधार नहीं
धोखा दे हमारे लोहे से
बना ली उनने अपनी धार
जबकि जो भी है अपने जीवन में लोहा सोना
जिस भी ऐक्शन में अपने लगते हैं सान औ’ धार
बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले, बाबा साहेब जैसे पुरखों से उनके जरूर से जुड़ते हैं तार
लाख चुकाओ चुक नहीं सकता एक भी कतरा
बाबा साहेब एवं उन जैसों से पाए ऋण का
जो उनसे मिला उधार!