लोग गीता रखते हैं, पढ़ते कहाँ ?
कर्मज्ञान समझाने से पहले
लोग ‘गीता’ तो ज़रा पढ़ लें !
फिर प्रभारी प्राचार्य
बनने में तब
क्यों करें कोई लट्ठमारी ?
नूर साहब !
बस यही तो अभी
चल रही है !
लोग गीता रखते हैं,
पढ़ते कहाँ ?
कर्मज्ञान समझाने से पहले
लोग ‘गीता’ तो ज़रा पढ़ लें !
फिर प्रभारी प्राचार्य
बनने में तब
क्यों करें कोई लट्ठमारी ?
नूर साहब !
बस यही तो अभी
चल रही है !
लोग गीता रखते हैं,
पढ़ते कहाँ ?