*लोग क्या थे देखते ही, देखते क्या हो गए( हिंदी गजल/गीतिका
लोग क्या थे देखते ही, देखते क्या हो गए( हिंदी गजल/गीतिका )
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( 1 )
हाथ में थे फूल कंटक, किंतु आकर बो गए
लोग क्या थे देखते ही, देखते क्या हो गए
( 2 )
रक्षकों का भी जरा यह, आचरण तो देखिए
खुद घरों की छत ढहाकर, चैन से फिर सो गए
( 3 )
सौ साल तक जादूगरों को, देखती दुनिया रही
और उसके बाद फिर, आकाश में वह खो गए
( 4 )
फिर कभी सपनों में भी, उनके नहीं दर्शन हुए
सर्वदा को छोड़ यह, संसार नश्वर जो गए
( 5 )
वह मजे से पाप पूरे, साल भर करते रहे
एक चुटकी पुण्य फिर सब, पाप उनके धो गए
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451