लोग और रिश्ते
कुछ ‘लोग’ हैं
कुछ ‘रिश्ते’ हैं
मैंने दोनों को
अलग-अलग ढूँढा
सभी रिश्तों में ‘लोग’ मिले
और
‘लोगों’ में मिले
कुछ नायाब रिश्ते
मिलते ही रहे अनवरत
लोगों में रिश्ते
मिलती रही संवेदनशीलता
करुणा,अपनेपन की उष्णता
लोगों में,
और
खून के खूनी रिश्ते
फीके पड़ते गये
टूटते गये
सूखते गये।
-अनिल मिश्र,प्रकाशित