“लोगो का अतिरिक्त मूल्यांकन”
हर व्यक्ति का अपना है जीवन,
सुख दुःख के भावों से भरा है उसका अंतर्मन।
क्यों हम अपना ध्येय छोड़कर,
दूसरो के जीवन का करते हे आकलन।
बिना सत्यता को पहचानकर,
करते हैं सही गलत का समाकलन।
स्व-आत्ममंथन को छोड़कर,
चिकनी चुपड़ी बातों का विस्तार।
बेवजह की व्याख्या का अंत,
भर सकता है मानव मन में आनंद।
सत्यता कभी न निर्भर,
असत्य संवाद के प्रसार पर।
प्रत्येक मानस का है अपना मर्म,
क्यूँ बाधित करें हम दूसरे के कर्म।
आहत होता अनायास मानव मन,
जब होता लोगो का अतिरिक्त मूल्यांकन।