लोक कहैये
लोक कहैये
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लोक कहैये, एना छी,
लोक कहैये, ओना छी,
अहां कोनो छुई-मुई नै जे,
लोगक टोकने,छन में मुरझा जाएब,
आओर स्तवन सुनि,छन में बिहँसि पड़ब।
लोगक काम एतबे रहि गेल,
अनटेटल सबाल पुछि मन भरमाएब,
छोट-मोट बात पर टोक लगाएब,
बात-बात पर टांग अड़ायब,
टोका-टोकी चुगली में टेम कटाएब,
दोसरक नालिस मऽ कान लगाएब ।
ई सभबोल पर जे, हम पतियाएब,
लोगक कहने हम केस रंगाएब,
धिया-पुता जकां स्टाइल बनाएब,
देखा-देखी में हिअ तड़पाएब,
अन्तर्मन के कतेक भरमाएब।
लोक कहैये, कहिते रहत,
ई जग सारा हँसिते रहत ।
अपन मगज से काम लिय,
लोगक पतिआएब छोड़ि दिअउ ने,
हारब लक्ष्य से ते गरियाअत,
जितब जुझब तैयो मिमीयाएत ।
लोगक कहल पर नहिं जाउ ने,
फांटि पर चढ़ा कऽ चुनाव लड़बायत,
हारि जाएब त खिल्ली उड़बायत ।
योजना सकल जीवन में बनाउ,
लोगक टोकि सऽ पाछु नहिं हटि जाउ,
अपन भरोस आओर ईश्वर पर निष्ठा करु,
जीवन पथ पर सदिखन आगाँ बढ़ूँ।
लोक कहैये, कहिते रहत,
ई जग सारा हँसिते रहत ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०९ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201