लोकतंत्र
लोकतंत्र गुलाम है
परिवारवाद का
वंशवाद का
सदियों से और आज भी
मिली आजादी किसे?
सोचो जरा
तुम्हें या इन्हें?
तानाशाह कल भी थे
और आज भी हैं
तरीके बदल गये
देश की चिंता किसे है?
सत्ता की लालच ने
कैद कर रखा है
लोकतंत्र को
संसद रूपी पिज़रे में।
चाबी है इनके हाथों में
जब चाहे चाबी बदल लेते है
लोकतंत्र आश्रित
इसी दो धूरी पर
अब तुम सोचो फिर से
तुम्हारी जगह है कहाँ ?
आजादी मिली किसे ?
तुम आज भी गुलाम हो
इनके बनाये लोकतंत्र में
ऊंच- नीच, भेदभाव, जात पात
और एक रूढ़िवादी विचार में
फिर संभल जाओ
वरना गिरवी रख देगें
लोकतंत्र को ये लालची
तुम गाँघी जी के बन्दर की तरह
अंधे, बहरे और गूंगे बन कर
रह जाओगे
आज भी और कल भी