लोकतंत्र की अवाम
यूं हक लोकतंत्र का अता होता ही रहा l
रोशनी मिलती रही घर जलता ही रहा ll
जड़ों में थी दीमक हवा में धुंआ भी l
ऐसे पौधे को लहू से सीचता ही रहा ll
सागर की कुछ मछलियां सागर ही पी गईl
साथ पतवार फिर भी किनारे ही रहाll
वह अब भी करता है दावा रहनुमा होने काl
जो कुबेर की राजधानी में भटकता ही रहा ll
देश की अवाम “सलिल” बकरा हलाल का l
कोई न कोई गर्दन पर छुरी चलाता ही रहा ll
संजय सिंह “सलिल ”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश ll