लेन-देन
शीर्षक:लेन-देन
ये लेने देने का क्रम बहुत उलझा सा हैं
तेरे लिए कुछ और मेरे लिए कुछ और हैं
दिए संस्कार सारे तुमने बेटी को ही क्यो
क्या बेटे को नही जरूरत थी बतलाओ क्यो
लेना-देना पहले बेटी को पर बेटे भी नही क्यो
बहन फिर हो पत्नी के6अ सब स्त्री जाति को ही
आज अपमानित बेटियां हो रही सड़को पर भी
तार तार इज्जत क्यो उतार रहा है बेटा क्यो
क्यो सिसकियां दबा थी जा रही हैं बेटियों की
क्योंकि वो बेटा है बेटा तुम्हारा लाडला
संस्कार विहीन निरह निपट पर बेटा हैं
सम्बोधन तुमने ही तो बनाये थे
नहीं बताए तुमने माँ-बेटी-बहन-बहू की इज्जत के दायरे
एक ऐसा व्यक्तित्व जो बदलता है जगत-रीत से बेटा
तुम्हीं अपनी छवियों को जोड़ती हो छिपाती हो क्यो
छवियाँ पूरक है एक-दूसरे की अनंत काल से हैं
पर अब सजग होना होगा क्योंकि बेटियां अब नही सहेंगी
देना होगा अब बेटों को भी संस्कार समान
लेना होगा सभी फैसला अब बेटी के लिए भी
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर साथ साथ ही
बेटों में भी संस्कार जगाओ,उन्हें बताओ
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद