लेखनी
शीर्षक- लेखनी
लिख लिख कर लेखनी
कुशल कुशाग्र हो गई ।
नहीं गिरती अटकती
अब तो समग्र हो गई ।
हुआ समाप्त खुरदरापन
कोमल स्निग्ध हो गई ।
वतन की व्यथा कथा पर
अतिशय उदिग्न हो गई ।
छूते ही अंगूठे तर्जनी से
व्याकुल अधीर हो गई।
भारत की दीन दुर्दशा से
धर धीरज गंभीर हो गई ।
दुरूह को सरल कर
चलायमान हो गई ।
खत्म नहीं होती सियाही
रेशम रोशनाई बन गई।
झेल कर जीवन संघर्ष
कुमार्ग को छोड़ कर।
होकर सदैव संयमित
चल रही सन्मार्ग पर।
अब न थमेगी न थकेगी
अब न मुड़ेगी न झुकेगी।
लेगी शपथ प्यारे वतन की
धन प्राण न्यौछावर करेगी।
निशा नंदिनी (भारतीय)
तिनसुकिया, असम
नाम-निशा नंदिनी(भारतीय) तिनसुकिया, असम