लुटे गुलशन में तुम आए
लुटे गुलशन में तुम आए
चमन में बहार बन छाए।
कहीं था कोई न सहारा,
तुम खेवनहार कहलाए।
रहे जो बन्द अधर मेरे,
कली सी खिल के छितराए।
तुम्हें मैं देख लिया करती,
नहीं मन मेरा घबराए।
हँसी बन रात गए मेरी,
तुम्हीं से विभात मुस्काए।
लुटे गुलशन में तुम आए
चमन में बहार बन छाए।
कहीं था कोई न सहारा,
तुम खेवनहार कहलाए।
रहे जो बन्द अधर मेरे,
कली सी खिल के छितराए।
तुम्हें मैं देख लिया करती,
नहीं मन मेरा घबराए।
हँसी बन रात गए मेरी,
तुम्हीं से विभात मुस्काए।