लुगाई और मँहगाई (हास्य कविता)
अपने मित्र को देखते ही?
मैं भड़क उठा और बोला
छोटे भाई बन मेरी लुगाई को घूरने से अच्छा?
की तूं उसे ले ही भाग.
मेरे मित्र ने पूछा, अच्छा ये तो बता,
एसी कौन सी आफत आ गई है?
मै बोला ये आफत नहीं तो और क्या?
अपनी लुगाई से पीटते अब तो गंजे होने की नौबत आ गई है.
मैं और ज्यादा पीटूं, इससे अच्छा की?
तूं ही इसे ले भाग.
जल्दी कर भाई, कितने दिनो बाद,
तेरी किस्मत खुली आज.
मित्र बोला जी तो मेरा भी करता है की?
आज इन्हें कहीं दूर ले भागूँ?
रहम कर इस बेरोज़गार भाई पर,
दिखता नही तुझे कितनी मँहगाई है?
मैं इन्हे ले भी भागा तो?
सब लोग यहि कहेंगे किशन
की ये तेरी नहीं फिर क्यों यँहा?
ये तो किसी और की लुगाई है?
कैसी आफत पड़ी मँहगाई और लुगाई?
हो दोनो जैसी जुड़वा बहन?
सरेआम बाज़ार मे लूट गया ‘किशन’
बत्तिस्सी दिखावे तूं मना ले जशन?
कवि-किशन कारीगर
(©काॅपीपाईट)