लिख नहीं पाता हूँ – डी के निवातिया
लिख नहीं पाता हूँ
***
लिखना चाहता हूँ
पर लिख नहीं पाता हूँ
आँखों के सामने तैरते
कुछ ख्वाब,
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़
आते है क्षण भर के लिए
फिर गुम जाते है
सहेज कर किसी तरह
उनको रखना चाहता हूँ
लिखना चाहता हूँ
पर लिख नहीं पाता हूँ !!
!
कभी कभार
यूँ बैठे बैठे ही
या फिर चलते चलते
जगने लगते है है
कुछ मनोभाव
स्पंदन करते हुए
धुंधला जाते है
जब तक बांधता हूँ
कलम के तार में
कही दूर निकल जाते है
और फिर ..वही…….!
ठगा सा रह जाता हूँ !!
लिखना चाहता हूँ
पर लिख नहीं पाता हूँ !!
!
कितना सरल
लगता है सबको
कुछ लिख पाना
कवित्त भाव
ह्रदय जगा पाना
है उतना ही कठिन
मगर कार्य यह
बड़ा ही असाधारण
कोशिश करके भी
हार जाता हूँ
बारम्बार ..
नहीं कर पाता हूँ
लिखना चाहता हूँ
पर लिख नहीं पाता हूँ !!
!
स्वरचित :- डी के निवातिया