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28 Nov 2016 · 1 min read

लिखा ही समझते हैं न ज़बानी हमारी

लिखा ही समझते हैं न ज़बानी हमारी
यही है मुद्दत से परेशानी हमारी

दिया जो दिल किसी को वापस नहीं लेते
यहाँ दिल पे चलेगी सुल्तानी हमारी

बिठा लेंगे पलकों पे मिले तो किसी तरह
कहीं पे खोई है ज़िंदगानी हमारी

हुई भूल कहाँ क्यूँ कर बताएँगे सोच के
अभी तो हैरान है हैरानी हमारी

रखा है ख़्याल हमेशा अपने वालिद का
रहेगी जहाँ में यही पहचान हमारी

कोई लाग न लपेट बात साफ कहते हैं
ख़ुदाया आदत है ख़ानदानी हमारी

समझ जाएगा कोई भी संग दिल यारो
कहाँ इतनी नाज़ुक है कहानी हमारी

सुरेश सांगवान’सरु’

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