लिखते-लिखते खत्म रोशनाई हुई……..
तेरे बारे में माँ सोचा था कुछ लिखूँ,
लिखते-लिखते खत्म रोशनाई हुई।
ग़र जो तकलीफ में, मैं कहीं था फंसा,
तेरे दिल में हुई, एक हलचल सी माँ,
और उसका था तुमको पता चल गया,
याद तुमने किया, याद आयी मुझे,
राह तुमने थी माँ जो बताई हुई।
लिखते-लिखते खत्म……
तेरे कद़मों में रह, तेरा स़जदा करूँ
तेरा आशीष ले, मुश्किलों से लड़ूँ,
आये बाधा कोई राह में जो मेरी,
लड़खड़ाये कद़म न ये कोशिश करूँ,
मेरे सिर पे सदा हाथ तेरा रहे,
तेरी रहम़त से बढ़ न खुदाई हुई।
लिखते-लिखते खत्म……
गऱ जो रूठूँ कभी, क्योंकि नादान हूँ,
लेके आँचल में माँ तू तेरा प्यार दे,
और फिर प्यार से तू ये मुझसे कहे,
मेरा बेटा नहीं, तू मेरा संसार है,
चूम ले मेरा माथा, और फिर कहे,
तू वो दौलत जो मैंने कमाई हुई।
तेरे बारे में माँ सोचा था कुछ लिखूँ,
लिखते-लिखते खत्म रोशनाई हुई।
आशुतोष पाण्डेय
बहराइच, उत्तर प्रदेश