“लिखते कुछ कम हैं”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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कहाँ हम दिल की बातें
कर पाते हैं ?
लिखने से पहले
कुछ सोचना पड़ता है
किसी को बुरा ना लगे
कोई मुझे आलोचनाओं
के घेरे में ना जकड़ ले
भाषा क्लिष्ट ना हो
सब उसे भली- भाँति समझें
लेखक तो बहुत
कुछ कहना चाहता है
पर प्रकान्तर से अपनी
बातें लोगों के समक्ष रखता है
राजनीति के बिसातों में
कभी उलझना नहीं चाहता
अपने इर्द -गिर्द
बहुत सी बातें होतीं हैं
कोई समाज को
दूषित करता है
कोई पथभ्रष्ट
बन जाता है
कोई देश को
धर्म और जाति
में बाँटना चाहता है
पर लेखक कहाँ
खुलके कह पाता है
प्रतिरोध भी
अधूरी रह जाती है
लेखक ,कवि, व्यंगकार सब
मर्यादाओं के दहलीज
पार नहीं करना चाहते
सोचते बहुत हैं पर
लिखते कुछ कम हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
14.10.2024