लिखती हूँ
लिखती हूँ ,
जो लिख सकती हूं
पर अक्सर जब नहीं लिखती
तो पढ़ रही होती हूँ
हवा की सरसराहट
रात का मद्धम गीत
ख़्वाबों का तिलिस्म
उगते सूरज की लाली
किसी बूढ़े की मुस्कान
औरतों की बेरंग ज़िन्दगी
बेवाओं की सूनी कलाइयां
किसानों की बिवाइयां
अपनी चुप्पी
दिल की धकधक
और हर वो चीज़
जो पढ़ सकती हूं
पढ़ रही होती हूँ
अपना मन भी