लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं
लिखता हूँ तो चुभती है बात
होता है क्यों जाने ह्रदय आघात
कलम के मायने क्यों बदल जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं
मैं तो बस कलम चलाता हूँ
भला किसको मैं तीर चुभाता हूँ
मेरे शब्दों को दिल पर ले जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं
मैं मन के भाव पिरोता हूँ
बैठ कर शब्दों को सॅजोता हूँ
पढ़ने वाले बस कयास लगाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं
मैं यूँ तो बहुत सोचता हूँ
कलम को कई दफा रोकता हूँ
कल्पना किए चित्र उकेरे जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते है
मैं तो यूँ ही कलम उठता हूँ
शब्दों से सिर्फ दिल बहलाता हूँ
‘V9द’ हर बात के मुद्दे बन जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं
स्वरचित
V9द चौहान